Wednesday, September 29, 2010

जय हो गुंडे बाबा की

हमेशा की तरह हमने आज फिर मिलने का प्रोग्राम बनाया। और मैं हमेशा की तरह भागा भागा उससे मिलने के लिए घर से निकला। मेरी पसंदीदा टी-शर्ट पहनी, परफ्यूम लगाया और निकल पड़ा। मगर मेरे गोग्गल्स कहाँ हैं। मैंने इधर उधर देखा। मम्मी बोली, "तेरी गर्दन पे लटके हैं"। मैंने देखा और संतुष्ट हुआ। जैसे ही बाइक स्टार्ट की, सामने से एक बिल्ली गुज़र गयी। मम्मी बोली, "थोड़ी देर रुक के जा"। मगर मैं तो "इक्कीसवीं सदी का पढ़ा लिखा नौजवान" था। मैं इन सब बातों पर थोड़े ही विश्वास करूँगा। मैं मम्मी को तिरछी निगाह से देखा और कहा "कोई नहीं"। और निकल पड़ा अपनी मंजिल की ओर

रास्ते में याद आया के आज पार्क तोह बंद रहेगा। ओह गोड। अब क्या। खैर उससे मिलने तोह जाना ही था। तोह मैं चलता रहा। पार्क के सामने ही उसका वेट किया। हमेशा की तरह वो लेट आई। मगर इस बार तोह करीब आधा घंटा लेट। गुस्सा तोह आ रहा था मुझे के लेट क्यूँ आई वो, बुत उसकी शक्ल देख कर सारा गुस्सा रफूचक्कर हो गया।

"आज पार्क बंद है" मैंने कहा।

"तोह ?"

"तो क्या, कुछ नहीं वापिस घर।" और करता भी क्या मैं।

"ह्म्म्म...नहीं। एक जगह और है जहाँ हम जा सकते हैं।" उसके अनुभवी दिमाग ने उसे आदेश दिया।

"पर कहाँ ?"

"बाइक स्टार्ट करो, बताती हूँ।"

मैंने उसके आदेश का पालन किया। और हम दोनों चले गए इस नए स्थान की ओर।

"ये क्या मुझे मेरे ही घर ले जा रही हो। " मैंने रास्ता देखते हुए पूछा। मैंने सोचा ये कुड़ी पागल हो गयी है।

"ओफ्फो, तुम चलो तोह। यहाँ से सीधे चलना। अपने घर की तरफ मोड़ना मत।"

"ओके" मैंने उसकी आज्ञा का पालन किया।

"हाँ हाँ बस। आगे से लेफ्ट।"

"ओके"

"वाओ..क्या शानदार रोड है यार। मैं तोह पहले कभी नहीं आया यहाँ पर।"

"ह्म्म्म..जानती हूँ"

"प्यास लगी है। एक पानी की बोतल ले लें?"

"हाँ बिलकुल, तुम यहीं रुको मैं लेके आया।"

मैं पानी लेके आया। तब मैंने ध्यान दिया हमसे थोड़ी ही दूर पे कुछ लड़के हमें घूर रहे हैं। मैंने तनु से कहा।

"यार, ये जगह काफी सुनसान नहीं लग रही तुम्हे।"

"हाँ तो ? वोह अंकल आंटी भी तोह बैठे हैं"

"हम्म...ठीक है। चलो यहीं कहीं बैठते हैं।"

और हम बैठ गए। और फिर वहीँ हमारी इधर उधर की बातें शुरू हो गयी। तभी मैंने देखा के वोही लड़के फिर मोटरसाइकल पर आये और फिर हमें घूर रहे थे। मैंने उनकी तरफ थोड़े गुस्से से देखा।

तनु बोली "अरे छोड़ो क्षितिज, इनका तोह काम ही यही है। जहाँ भी दो लड़का लड़की दिखे तोह घुरना शुरू कर देते हैं।"

मैंने फिर अपना ध्यान तनु पर लगाया। वोह अपने बाल खोल कर कंघी करने लगी और शायद पहली बार मैंने उसकी तरफ एक आकर्षण महसूस किया। कहने को तोह वोह मेरी दोस्त थी, मेरी सबसे अछि दोस्त, मगर आज कुछ अलग सी फीलिंग आ रही थी उसके लिए। खैर उसका कंघी करना और मेरा उसे निहारना जारी रहा। के तभी उन लडको का फिर से आगमन हुआ मगर वोह तीन की जगह चार थे। और वे तेज़ी से हमारी तरफ बढे। उन्हें इस तरह आता देख वोह अंकल आंटी तोह भाग खड़े हुए। मगर हम दोनों को सँभालने का मौका मिलता उससे पहले ही उन्होंने उतर के मुझे पर लात घूंसों की बारिश शुरू कर दी।

"अरे..रे ये क्या कर रहे हो" शायद ऐसा ही कुछ मैंने बोला हो। उस वक़्त सोचने का मौका नहीं मिल रहा था। उन्होंने मुझे मारना जारी रखा। अपने लेफ्ट साइड पर मैंने देखा तनु ने रोना शुरू कर दिया था साथ ही वोह चिल्ला रही थी, शायद उनसे कह रही हो के मुझे ना मारें, मगर उनपर कोई असर नहीं हुआ था।

मैंने मेरे ठीक सामने वाले बन्दे को धक्का दिया और थोड़ी दूर जाकर खड़ा हो गया। मैं जो सवाल करना चाहता था उसका उत्तर बिना पूछे ही मुझे मिल गया।

"यहाँ अक्सर लड़कियों के साथ रेप होते रहते हैं। और पुलिस गाँव वालों को परेशान करती है। तुम लोगों की वजह से हमारा जीना मुश्किल हो गया है। क्या तुम्हे कोई और जगह नहीं मिलती नैनमटक्का करने के लिए।"

"देखो तुम फालतू की बात मत करो। हम दोनों दोस्त हैं और सिर्फ यहाँ बैठ के बातें कर रहे थे। ये तुम भी जानते हो क्यूंकि तुम बहुत देर से हम दोनों पर नज़रें जमाये बैठे हो।

"मैं कुछ नहीं जानता। मैं सिर्फ इतना जानता हूँ के तुम दोनों को पुलिस स्टेशन लेके जाऊंगा"

पुलिस स्टेशन के नाम से तनु घबरा गयी। मुझे ये पूरा वाकया किसी फिल्मी सीन की तरह लग रहा था। जहाँ मैं था, मेरे साथ एक खुबसूरत लड़की, और सामने कुछ गुंडे। फिल्मों में ऐसे सीन बड़ी आसानी से निपट जाते हैं मगर उस समय मेरी जो हालत थी, वोह किसी भी फिल्मी हीरो से मेल नहीं खाती थी। फिल्मी हीरो तोह किसी से नहीं घबराता, मगर यहाँ मेरी फटी पड़ी थी। किसी फिल्मी सीन और इस घटना में अगर कोई समानता थी तोह वोह थी एक खुबसूरत लड़की और कुछ गुंडे। मेरा फिल्में देखना किसी काम का नहीं अगर मैंने उनमें से कुछ सीखा नहीं। ये सब मेरे दिमाग में चल रहा था। मैंने उस मुख्य गुंडे के आजू बाजु खड़े छोटे गुंडों को देखा। देखने में सब के सब सींक कबाब थे। उनको देख कर मेरी हिम्मत थोड़ी बढ़ी ये सोचकर के इनमें से कुछ से तोह मैं निपट ही सकता हूँ। मैंने कहा।

"पुलिस स्टेशन। चलो चलो बिलकुल चलो पुलिस स्टेशन। जब हमनें कुछ किया ही नहीं तोह हमें किस बात की चिंता।"

मगर मेरी टीम में एक ऐसा प्लयेर भी था जिसे स्टेशन जाने की बात पसंद नहीं आई।

"पागल हो गए हो। स्टेशन गए तोह, सीधे घर पे काल जायेगा। और मेरी छुट्टी हो जाएगी। चुप करो।" तनु बोली.

मैं तनु को कैसे समझाता के स्टेशन का तोह सिर्फ बहाना है, इन्हें तोह हमें लूट के जाना है। मैंने फिर कहा।

"चलो न स्टेशन। अब क्यूँ रुके हुए हो।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

उन्हें मेरा मुस्कुराना पसंद नहीं आया।

"अबे एक तोह यहाँ छुप छुप कर लड़की के साथ रंगरलियाँ मन रहा था। हमारा नाम ख़राब कर रहा था और अब तू हंस रहा है" कहते हुए वो मेरे पास आया और मुझे फिर मारने की कोशिश की। मगर तनु बीच में आ गयी उसका हाथ पकड़ने। तनु के अन्दर झाँसी की रानी की आत्मा आते देख मुझे भी जोश आया और मैंने उस गुंडे का हाथ पकड़ के ऐसा घुमाया के वोह दर्द से कराह उठा और मैंने उसे ज़मीन पे धक्का देकर एक लात जमाई। और पलट कर तनु की तरफ देखा ये सोच कर के वोह मेरी बहादुरी देख कर फूली नहीं समां रही होगी। मगर उसके चेहरे पर ऐसा कोई भाव न था। दूसरी तरफ छोटे गुंडों ने जब अपने लीडर को ज़मीन पर धराशायी देखा तोह उन्होंने भाग कर मुझे पकड़ लिया। उनका लीडर उठा और सीधे अपना असली मकसद बयान कर दिया।

"देख बे, तुझे अगर पुलिस स्टेशन नहीं जाना है तोह सीधे 1००० रुपये मेरे हाथ में रख दे।"

"हमारे पास हज़ार रुपये हैं ही नहीं।"

"तो कितने हैं ?"

"होंगे १००-२०० रुपये।"

"अबे फक्कड़ शर्म नहीं आती, १००-२०० रुपये जेब में रखके लड़की घुमाने निकला है। ये गाडी यहीं छोड़ के जा।"

"अबे तुम पागल हो गए हो। जानते हो कितनी दूर से आये हैं यहाँ। वापिस कैसे जायेंगे।"

"मुझे क्या करना है बे चूतिये। ये सब सोच के।"

"प्लीज़ भैया, हमें जाने दीजिये न।" तनु ने अपनी मधुर आवाज़ में कहा।

"भैय्या ?। हा हा हा। तू चुप कर।"

तभी वहां से कुछ ट्रेक्टर गुज़रते हुए दिखाई दिए। इन गुंडों ने यहाँ से चम्पत होने में ही भलाई समझी। बिना रुपये लिए ही वे अपनी मोटरसाइकल पर विराजमान हो गए।

"बेटा, तुम दोनों की किस्मत बहुत अछि है।"

मुझे लेकिन समझ नहीं आया के इस पिटाई को मैं अपनी अछि किस्मत समझूँ या बुरी। खैर मैंने भी अपनी बाइक स्टार्ट की, तनु को बिठाया और अगले ३ किलोमीटर तक मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। थोड़ी दूर और जाके मैंने गाडी रोकी और तनु को मुड़कर देखा। और हम दोनों जोर से हंस दिए। हमें यकीन नहीं हुआ के हम दोनों बिलकुल सुरक्षित अपने सारे पैसों के साथ वहां से निकल आये थे। वाकई हम खुशकिस्मत थे। जो होता है अछे के लिए होता है ऐसा मैंने हमेशा विश्वास किया है। मगर आज की घटना क्या अच्छा लेके आने वाली थी इसका इंतज़ार मुझे ज्यादा देर नहीं करना पड़ा। तनु ने कास के मुझे पकड़ा हुआ था। पहली बार उसने मुझे हग किया था। मैंने उससे पूछा "हम अब भी सिर्फ फ्रेंड्स हैं ना?" उसने कुछ नहीं कहा बस वो हंसी और एक ज़ोरदार हग और दिया। मैं मन ही मन उस गुंडे सज्जन को दुआएं दे रहा था। मेरे लिए तोह वोह भगवान् के भेजे किसी अवतार से कम न था। जो कुछ मैं पिछले १-१/२ साल की मुलाकातों में नहीं करवा पाया था वोह आज इस एक घटना से हो गया था। जय हो गुंडे बाबा की।

3 comments:

  1. Is this tru...or just a story....my scriptwriter....nyways..if its tru...then best of luck....and if it is just a story...then again...best of luck..keep writing...

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  2. Kshitij well done man!! Loved to read from you. Keep writing and sharing experiences. Best of luck

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