Saturday, September 25, 2010

Enough I Say !!!

शहर के बीचों बीच बसा एक क़स्बा, नया नगर। सकरी गलियां, गन्दी नालियाँ, टूटे मकान। यही पहचान हैं नया नगर की। कहने को तोह घरों के बीच ज्यादा दूरियां नहीं थी, मगर दिलों के बीच जो दूरियां थीं, उसका कोई हिसाब न था। आस पड़ोस में क्या हो रहा है, किसी को खबर ना थी और ना ही चिंता। कोई जिए या मरे किसी को परवाह ना थी।

यहीं बीच में थी वोह खोली। खोली नंबर ११२। वही पुरानी टूटी फूटी कोली, जिसके अन्दर क्या हो रहा है, किसी को पता न था।

अन्दर एक १२ साल की लड़की अपनी माँ की गोद में दुबक के बैठी थी। वोह हांफ रही थी, दरी सहमी। नज़रें नीचे किये हुए...शायद किसी से डरके बैठी थी। वहीँ उसकी माँ उसे अपनी बाहों में कस के पकड़ के बैठी थी। वोह किसी से रहम की गुहार लगा रही थी। उनके सामने एक बड़ी सी परछांई थी। शायद इसी से वोह दोनों डरे हुए थे।

"अब मैं तुम दोनों को और नहीं झेल सकता। यहीं आज तुम दोनों की कब्र खोदुन्गा।"

माँ रोते हुए बोली। "हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है। और तुम्हारा झगडा तोह मुझसे है ना। इस सब में रिमझिम की क्या गलती है।"

"तू चुप कर हरामजादी। बहुत सुन ली तेरी बकवास। अब और नहीं झेल सकता। अब मुझे कोई नहीं रोक सकता। समझी। तू भी नहीं। " कहते हुए वोह उसकी तरफ रिवोल्वर तान देता है।

"देखो, तुमने बहुत ज्यादा पी राखी है। ऐसा कुछ मत करो जिसपे बाद में तुम्हे पछतावा हो।"

"हा हा हा...पछतावा...और वोह भी तुझे मारने का..हा हा हा। कभी नहीं।"

सकूबाई उससे रिवोल्वर छीन ने के लिए कड़ी होती है। मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। दन्न से गोली चलती है। एक नहीं तीन। और सकूबाई वहीँ ढेर हो चुकी थी।

कुछ घंटे पहले

"माँ क्या हमें इस आदमी के साथ रहना ज़रूरी है। हम कहीं दूर जा नहीं सकते क्या। मैं नहीं चाहती के वोह हमें और मारे"

"रिमझिम, ये मत भूल के हम सड़क पर होते अगर मालिक का सहारा ना होता। कचरे के ढेर में कहीं पड़े होते हम।"

"कहीं भी होते मगर इस नरक से तोह अछे ही होते"

तभी कोई जोर से धक्का देके दरवाज़ा खोलता है। ये मालिक है। हमेशा की तरह शराब के नशे में टुन्न होके आया है। आते ही अपने हाथ सकुबाई के बालों पर फिराता है, उसके हाथ सकुबाई की गर्दन से होते हुए उसके सीने की तरफ बढ़ते हैं। सकुबाई उसे रोक देती है।

"जाओ जाके सो जाओ। बहुत पी राखी है तुमने।"

मालिक को गुस्सा आ जाता है। "चुप साली, बहुत हो गया। अब तू मुझे नहीं बताएगी के मुझे क्या करना और क्या नहीं समझी क्या।"

मालिक रिमझिम की तरफ देखता है। "चल ठीक है, तू नहीं तोह तेरी बेटी ही सही।"

"छि छि कैसा बाप है तू।"

"चुप कर। ये मेरी बेटी नहीं है। तू तोह कुछ करने देती नहीं। लगता है तेरी बेटी की पिटाई करनी पड़ेगी तुझसे कुछ करवाने के लिए। हा हा हा"

रिमझिम के पास जाकर मालिक उसे ३-४ थप्पड़ लगा देता है। रिमझिम चुप चाप मुंह नीचे किये हुए, आँखें बंद किये हुए ये सब सह लेती है। उसकी आँखों से पानी की सिर्फ कुछ बूँदें निकलती हैं। सकुबाई हताश थी। मालिक के सिवा उसका कोई आसरा ना था। वोह सब कुछ देख के भी कुछ नहीं करती।

मालिक पर नशा कुछ ज्यादा ही हावी था। वोह वहीँ गिर जाता है। सकुबाई उसे घसीट के बिस्तर तक लाती है और उसे बिस्तर पर लिटा देती है। मगर उसके आंसूं थम नहीं रहे थे। उसके अन्दर का ज़मीर उसे खाए जा रहा था के कैसे उसने अपनी फूल जैसी बची को अपने सामने एक दरिन्दे से मार खाने दिया। वोह क्या इतनी कमज़ोर हो गयी है के अपनी बची को बचा नहीं सकती। वोह क्यूँ आज तक ये सहती जा रही है। क्यूँ हिम्मत नहीं दिखाई आज तक। क्यूँ इस पिंजरे से भाग नहीं गयी अपनी रिमझिम को लेके। आज तोह हद ही हो चुकी थी। ऐसा कब तक चलेगा। नहीं। अब और नहीं। अब और वोह खुद को और उसकी रिमझिम को ये सब सहने नहीं देगी।

इतना सब सोचते हुए वोह बहार आई और गली के कोने में लगे STD बूथ तक गयी। और फ़ोन लगाने लगी। इससे पहले के सामने से कोई फ़ोन उठा पता। किसी ने सकुबाई के हाथ से रिसीवर छीन के वापस रख दिया था। ये मालिक था। वोह शायद सोया नहीं था।

"क्या कर रही थी... चल मेरे साथ। तुझे बताता हूँ मैं आज।"

मालिक सकुबाई को खींचता हुआ घर के अन्दर लाया।

"बोल किसको फ़ोन लगा रही थी। अपने भाई को। मुझे गिरफ्तार करवाएगी तू। हाँ। बोल। अब चुप क्यूँ हो गयी तू।"

सकूबाई को एक ही तरीका सूझा इस परिस्थिति से बचने का। उसने अपने हाथ मालिक गर्दन पे डाले और बोली।

"मैं क्या कभी ऐसा कर सकती हूँ...मेरी जान।"

"तू छू मत मुझे साली। तुझे अछे से जानता हूँ मैं"

रिमझिम ये सब अपनी आँखों से देख रही थी। वोह पलंग के पीछे छुप के बैठी थी। वोह बुरी तरह से दरी हुई थी। मालिक ने सकुबाई को धक्का दिया और पलंग के बाजू में राखी अलमारी तक गया और उसमें से रिवोल्वर निकाल ली। रिवोल्वर देखते ही रिमझिम चीख पड़ी और दौड़ के अपनी माँ के पास जाके उसकी गोद में दुबक गयी।

वर्त्तमान

अपनी माँ को ज़मीन पे निढाल पड़ा देख के रिमझिम के होश उड़ गए थे। उसे समझ नहीं आ रहा था के वोह क्या करे। उसने अपनी माँ को हिलाने की कोशिश की। मगर सब व्यर्थ था। उसकी आँखों में आसू छलक उठे थे। उसने गुस्से से मालिक को देखा।

"आँखें क्या दिखाती है। अभी तेरा हाल भी यही होने वाला है" कहते हुए उसने एक जोर दार तमाचा रिमझिम को लगाया।

"अरे रे इतनी हिम्मत भी नहीं तुझमें के पलट के एक थप्पड़ मुझे लगा सके।"

"और तू इतना बड़ा नामर्द है जो दो औरतों को मार रहा है" रिमझिम ने पहली बार ऐसी ऊंची आवाज़ में मालिक से बात की थी। "हमने तेरे साथ कभी कुछ बुरा नहीं किया, क्यूँ तुने मेरी माँ को मारा"

मालिक के पास कोई जवाब न था। इस वजह से उसका गुस्सा और बढ़ गया। "क्या कहा तुने" मालिक ने रिवोल्वर ज़मीन पे फ़ेंक दी। और रिमझिम के पास आकर उसका गला पकड़ लिया। "मुझे नामर्द बोला तुने"

रिमझिम का गला काफी कस के पकड़ रखा था मालिक ने। उसके गले से आवाज़ नहीं निकल रही थी। फिर भी उसने कोशिश की। "ह...ह...ह... हां। नामर्द है तू। दुनिया का सबसे बड़ा नामर्द।"

मालिक का गुस्सा और बढ़ गया। उसने रिमझिम के गले पे और जोर लगाना चाहा। मगर तभी उसने सर पर कुछ महसूस किया। वोह पीछे पलता। अपनी ही रिवोल्वर सकूबाई के हाथ में देख के वोह हैरान था। सकू बाई में अभी मरी नहीं थी। उसमें इतनी जान बाकी थी के अपनी बेटी को बचा सके।

"और नहीं मालिक....और नहीं" इतना कहते ही उसने ट्रिगर दबा दिया और एक गोली मालिक के सर को चीरती हुई निकल गयी। मालिक अब मर चूका था। मालिक के ज़मीन पर गिरते ही सकुबाई भी गिर गयी। रिमझिम भागती हुई उसके पास पहुंची। वोह रोये जा रही थी। उसकी माँ ही उसके लिए सब कुछ थी। बिना माँ के वोह कैसे जियेगी। क्या वोह कुछ कर सकती थी अपनी माँ को बचाने के लिए। उसने सकुबाई का सर उठा के अपनी गोद में रखा। उसकी माँ उसे मुस्कुरा के देख रही थी। पर तभी उसकी आँखें बंद हो गयी।

"माँ " रिमझिम चिल्लाई। और बेतहाशा रोने लगी.

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