Friday, January 13, 2012

Diary of a Teenage Girl: Life After Breakup

Everything happens for a reason. Jab zindagi kisi anjaane mod par aati hai toh ya toh toofaan aata hai ya phir zindagi roshni se khil uthti hai. Ghum ke baad khushiyan zarur aati hai aur khushiyon ke baad ghum. Meri kahaani bhi kuch aisi hi hai.

Abhishek aur mere beech sab theek chal raha tha. Hum khush the ek dusre ke saath ya phir yun kahun ki main khush thi Abhishek ke saath.

But as they say, nothing is forever and things change without prior notice. Isi ko toh zindagi kehte hain. Mujhe nahi pata tha ki Abhishek ke dimag mein kya chal raha tha.

I started to notice a weird change in his behavior. Uski care, uska pyar dhundla hota gaya. Mere calls ka jawab aana band ho gaya and mujhe feel hone laga tha ki woh mujhe ignore kar raha hai.

And thode hi dino mein sabkuch clear ho gaya. Usne mujhe call karna band kar diya jaise mujhme koi interest hi na ho. Mujhe aisa lagne laga ki main hi is rishte ko zabardasti kheench rahi hun. Woh ab is kahani ka hissa tha hi nahi.

Jaise jaise din beet te ja rahe the, ye baat andar hi andar mujhe khaaye jaa rahi thi. Main uska ye rude behavior aur nahi jhel sakti thi aur mujhe sabkuch clear karna hi tha. Maine use call kiya aur puchha ki aakhir woh chahta kya hai and uska reply tha "See..main jaanta hun ki mera behavior badla hai and sach maano I don’t have any excuse to give. Is waqt main sirf itna keh sakta hun ki…..main is rishte ke liye tayyar nahi hun."

Abhi ne jo kaha wo main pehle se hi jaanti thi, mujhe pata tha ki hamare rishte mein kuchh toh galat tha, magar phir bhi Abhi ka aisa kehna aur usse alag hone ke khayal ne mujhe tod diya tha.

Maine use kai baar call kiya…jo baat adhuri reh gayi thi use pura karne ki koshish ki magar usne kabhi mera call pick nahi kiya.

Agar kabhi galti se bhi hum kahin takra jaate toh wo mujhse aankhen pher leta. Mujhse uska aisa selfish behavior sehen nahi ho raha tha aur yahi baat mujhe aur zyada dukh pahuncha rahi thi. I felt like a loser. Jo shakhs mujh par apni jaan lutata tha, aaj wo mujhse baat tak nahi karna chahta tha.

Ye sab soch soch kar main kahin aur concentrate nahi kar paa rahi thi. Maine logon se milna chhod diya. Meri saari ummeed, mera sara confidence jata raha. Kuchh aisa hone wala tha jo maine kabhi expect nahi kiya tha.

Mere results…main first year mein fail ho gayi thi. Ye ek aur jhatka tha mere liye. Magar jo hua theek hi hua. Isne mujhe mere baare mein sochne par majboor kiya.

Main kyun aisa behave kar rahi hun. Kiske liye ye haalat banakar rakhi hai. Us insaan ke liye jisne bina koi reason diye mujhe chhod diya. Bas ab bahut ho chuka. Kyun use paane ki koshish kar rahi hun. He doesn’t deserve me. I’ll have to stop this or my life would be ruined. I have to be something to prove myself.

Maine college jana phir se shuru kar diya, padhai par zyada dhyan dena shuru kiya. Maine mehsus kiya ki main pehle se zyada sincere ho gayi thi aur sabse achhi baat ye thi ki mujhe kai naye log mile jo mere bahut achhe dost ban gaye. Main unse koi bhi baat kar sakti thi. Mujhe pata chala ki achhe dost kitne important hote hain aur jo pehle mere paas nahi the. Maine phir se zindagi ko enjoy karna seekh liya tha. Agar ek dard zindagi mein itna kuch la sakta hai toh main tayyar thi aise kai dard sehne ke liye.

Khud ko prove karne ki lalak ne mujhe strong banaaye rakha. Sab kuch phir se theek ho gaya tha. Maine apni graduation complete ki with good grades. Zindagi ke apne tareeke hote hain humein kuch sikhaane ke liye. Bas ek jhatke ki zarurat thi mujhe ye sab samajhne ke liye.

Kabhi bhi naa-ummeed mat hona kyunki aapke jeena chhod dene se zindagi nahi rukti. Jo bhi hota hai achhe ke liye hota hai. Toofan ke baad hi humein wo khubsurat nazara dekhne ko milta hai jise hum indradhanush kehte hain.


- Kshitij Mathur

Wednesday, September 29, 2010

जय हो गुंडे बाबा की

हमेशा की तरह हमने आज फिर मिलने का प्रोग्राम बनाया। और मैं हमेशा की तरह भागा भागा उससे मिलने के लिए घर से निकला। मेरी पसंदीदा टी-शर्ट पहनी, परफ्यूम लगाया और निकल पड़ा। मगर मेरे गोग्गल्स कहाँ हैं। मैंने इधर उधर देखा। मम्मी बोली, "तेरी गर्दन पे लटके हैं"। मैंने देखा और संतुष्ट हुआ। जैसे ही बाइक स्टार्ट की, सामने से एक बिल्ली गुज़र गयी। मम्मी बोली, "थोड़ी देर रुक के जा"। मगर मैं तो "इक्कीसवीं सदी का पढ़ा लिखा नौजवान" था। मैं इन सब बातों पर थोड़े ही विश्वास करूँगा। मैं मम्मी को तिरछी निगाह से देखा और कहा "कोई नहीं"। और निकल पड़ा अपनी मंजिल की ओर

रास्ते में याद आया के आज पार्क तोह बंद रहेगा। ओह गोड। अब क्या। खैर उससे मिलने तोह जाना ही था। तोह मैं चलता रहा। पार्क के सामने ही उसका वेट किया। हमेशा की तरह वो लेट आई। मगर इस बार तोह करीब आधा घंटा लेट। गुस्सा तोह आ रहा था मुझे के लेट क्यूँ आई वो, बुत उसकी शक्ल देख कर सारा गुस्सा रफूचक्कर हो गया।

"आज पार्क बंद है" मैंने कहा।

"तोह ?"

"तो क्या, कुछ नहीं वापिस घर।" और करता भी क्या मैं।

"ह्म्म्म...नहीं। एक जगह और है जहाँ हम जा सकते हैं।" उसके अनुभवी दिमाग ने उसे आदेश दिया।

"पर कहाँ ?"

"बाइक स्टार्ट करो, बताती हूँ।"

मैंने उसके आदेश का पालन किया। और हम दोनों चले गए इस नए स्थान की ओर।

"ये क्या मुझे मेरे ही घर ले जा रही हो। " मैंने रास्ता देखते हुए पूछा। मैंने सोचा ये कुड़ी पागल हो गयी है।

"ओफ्फो, तुम चलो तोह। यहाँ से सीधे चलना। अपने घर की तरफ मोड़ना मत।"

"ओके" मैंने उसकी आज्ञा का पालन किया।

"हाँ हाँ बस। आगे से लेफ्ट।"

"ओके"

"वाओ..क्या शानदार रोड है यार। मैं तोह पहले कभी नहीं आया यहाँ पर।"

"ह्म्म्म..जानती हूँ"

"प्यास लगी है। एक पानी की बोतल ले लें?"

"हाँ बिलकुल, तुम यहीं रुको मैं लेके आया।"

मैं पानी लेके आया। तब मैंने ध्यान दिया हमसे थोड़ी ही दूर पे कुछ लड़के हमें घूर रहे हैं। मैंने तनु से कहा।

"यार, ये जगह काफी सुनसान नहीं लग रही तुम्हे।"

"हाँ तो ? वोह अंकल आंटी भी तोह बैठे हैं"

"हम्म...ठीक है। चलो यहीं कहीं बैठते हैं।"

और हम बैठ गए। और फिर वहीँ हमारी इधर उधर की बातें शुरू हो गयी। तभी मैंने देखा के वोही लड़के फिर मोटरसाइकल पर आये और फिर हमें घूर रहे थे। मैंने उनकी तरफ थोड़े गुस्से से देखा।

तनु बोली "अरे छोड़ो क्षितिज, इनका तोह काम ही यही है। जहाँ भी दो लड़का लड़की दिखे तोह घुरना शुरू कर देते हैं।"

मैंने फिर अपना ध्यान तनु पर लगाया। वोह अपने बाल खोल कर कंघी करने लगी और शायद पहली बार मैंने उसकी तरफ एक आकर्षण महसूस किया। कहने को तोह वोह मेरी दोस्त थी, मेरी सबसे अछि दोस्त, मगर आज कुछ अलग सी फीलिंग आ रही थी उसके लिए। खैर उसका कंघी करना और मेरा उसे निहारना जारी रहा। के तभी उन लडको का फिर से आगमन हुआ मगर वोह तीन की जगह चार थे। और वे तेज़ी से हमारी तरफ बढे। उन्हें इस तरह आता देख वोह अंकल आंटी तोह भाग खड़े हुए। मगर हम दोनों को सँभालने का मौका मिलता उससे पहले ही उन्होंने उतर के मुझे पर लात घूंसों की बारिश शुरू कर दी।

"अरे..रे ये क्या कर रहे हो" शायद ऐसा ही कुछ मैंने बोला हो। उस वक़्त सोचने का मौका नहीं मिल रहा था। उन्होंने मुझे मारना जारी रखा। अपने लेफ्ट साइड पर मैंने देखा तनु ने रोना शुरू कर दिया था साथ ही वोह चिल्ला रही थी, शायद उनसे कह रही हो के मुझे ना मारें, मगर उनपर कोई असर नहीं हुआ था।

मैंने मेरे ठीक सामने वाले बन्दे को धक्का दिया और थोड़ी दूर जाकर खड़ा हो गया। मैं जो सवाल करना चाहता था उसका उत्तर बिना पूछे ही मुझे मिल गया।

"यहाँ अक्सर लड़कियों के साथ रेप होते रहते हैं। और पुलिस गाँव वालों को परेशान करती है। तुम लोगों की वजह से हमारा जीना मुश्किल हो गया है। क्या तुम्हे कोई और जगह नहीं मिलती नैनमटक्का करने के लिए।"

"देखो तुम फालतू की बात मत करो। हम दोनों दोस्त हैं और सिर्फ यहाँ बैठ के बातें कर रहे थे। ये तुम भी जानते हो क्यूंकि तुम बहुत देर से हम दोनों पर नज़रें जमाये बैठे हो।

"मैं कुछ नहीं जानता। मैं सिर्फ इतना जानता हूँ के तुम दोनों को पुलिस स्टेशन लेके जाऊंगा"

पुलिस स्टेशन के नाम से तनु घबरा गयी। मुझे ये पूरा वाकया किसी फिल्मी सीन की तरह लग रहा था। जहाँ मैं था, मेरे साथ एक खुबसूरत लड़की, और सामने कुछ गुंडे। फिल्मों में ऐसे सीन बड़ी आसानी से निपट जाते हैं मगर उस समय मेरी जो हालत थी, वोह किसी भी फिल्मी हीरो से मेल नहीं खाती थी। फिल्मी हीरो तोह किसी से नहीं घबराता, मगर यहाँ मेरी फटी पड़ी थी। किसी फिल्मी सीन और इस घटना में अगर कोई समानता थी तोह वोह थी एक खुबसूरत लड़की और कुछ गुंडे। मेरा फिल्में देखना किसी काम का नहीं अगर मैंने उनमें से कुछ सीखा नहीं। ये सब मेरे दिमाग में चल रहा था। मैंने उस मुख्य गुंडे के आजू बाजु खड़े छोटे गुंडों को देखा। देखने में सब के सब सींक कबाब थे। उनको देख कर मेरी हिम्मत थोड़ी बढ़ी ये सोचकर के इनमें से कुछ से तोह मैं निपट ही सकता हूँ। मैंने कहा।

"पुलिस स्टेशन। चलो चलो बिलकुल चलो पुलिस स्टेशन। जब हमनें कुछ किया ही नहीं तोह हमें किस बात की चिंता।"

मगर मेरी टीम में एक ऐसा प्लयेर भी था जिसे स्टेशन जाने की बात पसंद नहीं आई।

"पागल हो गए हो। स्टेशन गए तोह, सीधे घर पे काल जायेगा। और मेरी छुट्टी हो जाएगी। चुप करो।" तनु बोली.

मैं तनु को कैसे समझाता के स्टेशन का तोह सिर्फ बहाना है, इन्हें तोह हमें लूट के जाना है। मैंने फिर कहा।

"चलो न स्टेशन। अब क्यूँ रुके हुए हो।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

उन्हें मेरा मुस्कुराना पसंद नहीं आया।

"अबे एक तोह यहाँ छुप छुप कर लड़की के साथ रंगरलियाँ मन रहा था। हमारा नाम ख़राब कर रहा था और अब तू हंस रहा है" कहते हुए वो मेरे पास आया और मुझे फिर मारने की कोशिश की। मगर तनु बीच में आ गयी उसका हाथ पकड़ने। तनु के अन्दर झाँसी की रानी की आत्मा आते देख मुझे भी जोश आया और मैंने उस गुंडे का हाथ पकड़ के ऐसा घुमाया के वोह दर्द से कराह उठा और मैंने उसे ज़मीन पे धक्का देकर एक लात जमाई। और पलट कर तनु की तरफ देखा ये सोच कर के वोह मेरी बहादुरी देख कर फूली नहीं समां रही होगी। मगर उसके चेहरे पर ऐसा कोई भाव न था। दूसरी तरफ छोटे गुंडों ने जब अपने लीडर को ज़मीन पर धराशायी देखा तोह उन्होंने भाग कर मुझे पकड़ लिया। उनका लीडर उठा और सीधे अपना असली मकसद बयान कर दिया।

"देख बे, तुझे अगर पुलिस स्टेशन नहीं जाना है तोह सीधे 1००० रुपये मेरे हाथ में रख दे।"

"हमारे पास हज़ार रुपये हैं ही नहीं।"

"तो कितने हैं ?"

"होंगे १००-२०० रुपये।"

"अबे फक्कड़ शर्म नहीं आती, १००-२०० रुपये जेब में रखके लड़की घुमाने निकला है। ये गाडी यहीं छोड़ के जा।"

"अबे तुम पागल हो गए हो। जानते हो कितनी दूर से आये हैं यहाँ। वापिस कैसे जायेंगे।"

"मुझे क्या करना है बे चूतिये। ये सब सोच के।"

"प्लीज़ भैया, हमें जाने दीजिये न।" तनु ने अपनी मधुर आवाज़ में कहा।

"भैय्या ?। हा हा हा। तू चुप कर।"

तभी वहां से कुछ ट्रेक्टर गुज़रते हुए दिखाई दिए। इन गुंडों ने यहाँ से चम्पत होने में ही भलाई समझी। बिना रुपये लिए ही वे अपनी मोटरसाइकल पर विराजमान हो गए।

"बेटा, तुम दोनों की किस्मत बहुत अछि है।"

मुझे लेकिन समझ नहीं आया के इस पिटाई को मैं अपनी अछि किस्मत समझूँ या बुरी। खैर मैंने भी अपनी बाइक स्टार्ट की, तनु को बिठाया और अगले ३ किलोमीटर तक मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। थोड़ी दूर और जाके मैंने गाडी रोकी और तनु को मुड़कर देखा। और हम दोनों जोर से हंस दिए। हमें यकीन नहीं हुआ के हम दोनों बिलकुल सुरक्षित अपने सारे पैसों के साथ वहां से निकल आये थे। वाकई हम खुशकिस्मत थे। जो होता है अछे के लिए होता है ऐसा मैंने हमेशा विश्वास किया है। मगर आज की घटना क्या अच्छा लेके आने वाली थी इसका इंतज़ार मुझे ज्यादा देर नहीं करना पड़ा। तनु ने कास के मुझे पकड़ा हुआ था। पहली बार उसने मुझे हग किया था। मैंने उससे पूछा "हम अब भी सिर्फ फ्रेंड्स हैं ना?" उसने कुछ नहीं कहा बस वो हंसी और एक ज़ोरदार हग और दिया। मैं मन ही मन उस गुंडे सज्जन को दुआएं दे रहा था। मेरे लिए तोह वोह भगवान् के भेजे किसी अवतार से कम न था। जो कुछ मैं पिछले १-१/२ साल की मुलाकातों में नहीं करवा पाया था वोह आज इस एक घटना से हो गया था। जय हो गुंडे बाबा की।

Saturday, September 25, 2010

Enough I Say !!!

शहर के बीचों बीच बसा एक क़स्बा, नया नगर। सकरी गलियां, गन्दी नालियाँ, टूटे मकान। यही पहचान हैं नया नगर की। कहने को तोह घरों के बीच ज्यादा दूरियां नहीं थी, मगर दिलों के बीच जो दूरियां थीं, उसका कोई हिसाब न था। आस पड़ोस में क्या हो रहा है, किसी को खबर ना थी और ना ही चिंता। कोई जिए या मरे किसी को परवाह ना थी।

यहीं बीच में थी वोह खोली। खोली नंबर ११२। वही पुरानी टूटी फूटी कोली, जिसके अन्दर क्या हो रहा है, किसी को पता न था।

अन्दर एक १२ साल की लड़की अपनी माँ की गोद में दुबक के बैठी थी। वोह हांफ रही थी, दरी सहमी। नज़रें नीचे किये हुए...शायद किसी से डरके बैठी थी। वहीँ उसकी माँ उसे अपनी बाहों में कस के पकड़ के बैठी थी। वोह किसी से रहम की गुहार लगा रही थी। उनके सामने एक बड़ी सी परछांई थी। शायद इसी से वोह दोनों डरे हुए थे।

"अब मैं तुम दोनों को और नहीं झेल सकता। यहीं आज तुम दोनों की कब्र खोदुन्गा।"

माँ रोते हुए बोली। "हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है। और तुम्हारा झगडा तोह मुझसे है ना। इस सब में रिमझिम की क्या गलती है।"

"तू चुप कर हरामजादी। बहुत सुन ली तेरी बकवास। अब और नहीं झेल सकता। अब मुझे कोई नहीं रोक सकता। समझी। तू भी नहीं। " कहते हुए वोह उसकी तरफ रिवोल्वर तान देता है।

"देखो, तुमने बहुत ज्यादा पी राखी है। ऐसा कुछ मत करो जिसपे बाद में तुम्हे पछतावा हो।"

"हा हा हा...पछतावा...और वोह भी तुझे मारने का..हा हा हा। कभी नहीं।"

सकूबाई उससे रिवोल्वर छीन ने के लिए कड़ी होती है। मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। दन्न से गोली चलती है। एक नहीं तीन। और सकूबाई वहीँ ढेर हो चुकी थी।

कुछ घंटे पहले

"माँ क्या हमें इस आदमी के साथ रहना ज़रूरी है। हम कहीं दूर जा नहीं सकते क्या। मैं नहीं चाहती के वोह हमें और मारे"

"रिमझिम, ये मत भूल के हम सड़क पर होते अगर मालिक का सहारा ना होता। कचरे के ढेर में कहीं पड़े होते हम।"

"कहीं भी होते मगर इस नरक से तोह अछे ही होते"

तभी कोई जोर से धक्का देके दरवाज़ा खोलता है। ये मालिक है। हमेशा की तरह शराब के नशे में टुन्न होके आया है। आते ही अपने हाथ सकुबाई के बालों पर फिराता है, उसके हाथ सकुबाई की गर्दन से होते हुए उसके सीने की तरफ बढ़ते हैं। सकुबाई उसे रोक देती है।

"जाओ जाके सो जाओ। बहुत पी राखी है तुमने।"

मालिक को गुस्सा आ जाता है। "चुप साली, बहुत हो गया। अब तू मुझे नहीं बताएगी के मुझे क्या करना और क्या नहीं समझी क्या।"

मालिक रिमझिम की तरफ देखता है। "चल ठीक है, तू नहीं तोह तेरी बेटी ही सही।"

"छि छि कैसा बाप है तू।"

"चुप कर। ये मेरी बेटी नहीं है। तू तोह कुछ करने देती नहीं। लगता है तेरी बेटी की पिटाई करनी पड़ेगी तुझसे कुछ करवाने के लिए। हा हा हा"

रिमझिम के पास जाकर मालिक उसे ३-४ थप्पड़ लगा देता है। रिमझिम चुप चाप मुंह नीचे किये हुए, आँखें बंद किये हुए ये सब सह लेती है। उसकी आँखों से पानी की सिर्फ कुछ बूँदें निकलती हैं। सकुबाई हताश थी। मालिक के सिवा उसका कोई आसरा ना था। वोह सब कुछ देख के भी कुछ नहीं करती।

मालिक पर नशा कुछ ज्यादा ही हावी था। वोह वहीँ गिर जाता है। सकुबाई उसे घसीट के बिस्तर तक लाती है और उसे बिस्तर पर लिटा देती है। मगर उसके आंसूं थम नहीं रहे थे। उसके अन्दर का ज़मीर उसे खाए जा रहा था के कैसे उसने अपनी फूल जैसी बची को अपने सामने एक दरिन्दे से मार खाने दिया। वोह क्या इतनी कमज़ोर हो गयी है के अपनी बची को बचा नहीं सकती। वोह क्यूँ आज तक ये सहती जा रही है। क्यूँ हिम्मत नहीं दिखाई आज तक। क्यूँ इस पिंजरे से भाग नहीं गयी अपनी रिमझिम को लेके। आज तोह हद ही हो चुकी थी। ऐसा कब तक चलेगा। नहीं। अब और नहीं। अब और वोह खुद को और उसकी रिमझिम को ये सब सहने नहीं देगी।

इतना सब सोचते हुए वोह बहार आई और गली के कोने में लगे STD बूथ तक गयी। और फ़ोन लगाने लगी। इससे पहले के सामने से कोई फ़ोन उठा पता। किसी ने सकुबाई के हाथ से रिसीवर छीन के वापस रख दिया था। ये मालिक था। वोह शायद सोया नहीं था।

"क्या कर रही थी... चल मेरे साथ। तुझे बताता हूँ मैं आज।"

मालिक सकुबाई को खींचता हुआ घर के अन्दर लाया।

"बोल किसको फ़ोन लगा रही थी। अपने भाई को। मुझे गिरफ्तार करवाएगी तू। हाँ। बोल। अब चुप क्यूँ हो गयी तू।"

सकूबाई को एक ही तरीका सूझा इस परिस्थिति से बचने का। उसने अपने हाथ मालिक गर्दन पे डाले और बोली।

"मैं क्या कभी ऐसा कर सकती हूँ...मेरी जान।"

"तू छू मत मुझे साली। तुझे अछे से जानता हूँ मैं"

रिमझिम ये सब अपनी आँखों से देख रही थी। वोह पलंग के पीछे छुप के बैठी थी। वोह बुरी तरह से दरी हुई थी। मालिक ने सकुबाई को धक्का दिया और पलंग के बाजू में राखी अलमारी तक गया और उसमें से रिवोल्वर निकाल ली। रिवोल्वर देखते ही रिमझिम चीख पड़ी और दौड़ के अपनी माँ के पास जाके उसकी गोद में दुबक गयी।

वर्त्तमान

अपनी माँ को ज़मीन पे निढाल पड़ा देख के रिमझिम के होश उड़ गए थे। उसे समझ नहीं आ रहा था के वोह क्या करे। उसने अपनी माँ को हिलाने की कोशिश की। मगर सब व्यर्थ था। उसकी आँखों में आसू छलक उठे थे। उसने गुस्से से मालिक को देखा।

"आँखें क्या दिखाती है। अभी तेरा हाल भी यही होने वाला है" कहते हुए उसने एक जोर दार तमाचा रिमझिम को लगाया।

"अरे रे इतनी हिम्मत भी नहीं तुझमें के पलट के एक थप्पड़ मुझे लगा सके।"

"और तू इतना बड़ा नामर्द है जो दो औरतों को मार रहा है" रिमझिम ने पहली बार ऐसी ऊंची आवाज़ में मालिक से बात की थी। "हमने तेरे साथ कभी कुछ बुरा नहीं किया, क्यूँ तुने मेरी माँ को मारा"

मालिक के पास कोई जवाब न था। इस वजह से उसका गुस्सा और बढ़ गया। "क्या कहा तुने" मालिक ने रिवोल्वर ज़मीन पे फ़ेंक दी। और रिमझिम के पास आकर उसका गला पकड़ लिया। "मुझे नामर्द बोला तुने"

रिमझिम का गला काफी कस के पकड़ रखा था मालिक ने। उसके गले से आवाज़ नहीं निकल रही थी। फिर भी उसने कोशिश की। "ह...ह...ह... हां। नामर्द है तू। दुनिया का सबसे बड़ा नामर्द।"

मालिक का गुस्सा और बढ़ गया। उसने रिमझिम के गले पे और जोर लगाना चाहा। मगर तभी उसने सर पर कुछ महसूस किया। वोह पीछे पलता। अपनी ही रिवोल्वर सकूबाई के हाथ में देख के वोह हैरान था। सकू बाई में अभी मरी नहीं थी। उसमें इतनी जान बाकी थी के अपनी बेटी को बचा सके।

"और नहीं मालिक....और नहीं" इतना कहते ही उसने ट्रिगर दबा दिया और एक गोली मालिक के सर को चीरती हुई निकल गयी। मालिक अब मर चूका था। मालिक के ज़मीन पर गिरते ही सकुबाई भी गिर गयी। रिमझिम भागती हुई उसके पास पहुंची। वोह रोये जा रही थी। उसकी माँ ही उसके लिए सब कुछ थी। बिना माँ के वोह कैसे जियेगी। क्या वोह कुछ कर सकती थी अपनी माँ को बचाने के लिए। उसने सकुबाई का सर उठा के अपनी गोद में रखा। उसकी माँ उसे मुस्कुरा के देख रही थी। पर तभी उसकी आँखें बंद हो गयी।

"माँ " रिमझिम चिल्लाई। और बेतहाशा रोने लगी.

Saturday, September 18, 2010

दृश्य 1

सूरज पहाड़ियों के पीछे अस्त हो रहा है। सूरज की लालिमा आसमान में चरों और फैली हुई है। बड़ा ही खुशनुमा माहौल है। चरों तरफ शांति ही शांति है के तभी पूरा जंगल एक गोली की आवाज़ से दहल उठता है। पंछी पेड़ों से उड़ जाते हैं। घोड़ों के टापोंकी आवाज़ आती है। जंगल की शांति अब भंग हो चुकी है। दो घुड़सवार तेज़ी से दृश्य में आ जाते हैं। वोह किसी का पीछा कर रहे हैं।

जय: "उस तरफ.....और तेज़"
शिवेन्दु: "हाँ"

दोनों लगाम पे और जोर लगाते हैं। उनका शिकार भागते भागते पहाड़ियों तक पहुँच जाता है। दोनों चलते घोड़ों पर से ही गोलियों के कुछ वार करते हैं। आखिर एक गोली उनके शिकार को लग ही जाती है और उनका शिकार कुछ फलांग और मार पता है। और ज़मीन पर ढेर हो जाता है।

दोनों अपने अपने घोड़ो से उतर जाते हैं। लगता है काफी देर से अपने शिकार का पीछा कर रहे थे। दोनों की हालत बड़ी खस्ता है। चेहरे पर धुल और पसीना साफ़ दिख रहा है।

"बड़ा दम था साले में। पीछा करते करते थका डाला", कहते हुए जय अपनी हट उतारता है और घोड़े की पीठ पर तंगी पानी की बोतल निकालता है और अपना मूंह धोता है।

"सही कहा" शिवेन्दु इधर उधर देखता है। "वैसे हम हैं कहाँ"। कहते हुए जय से पानी की बोतल लेता है और पानी पीता है।

जय अपनी दूरबीन निकलता है और उसे चरों तरफ घुमाकर ये जान ने की कोशिश करता है के वोह दोनों इस विशाल मैदान के कौनसे हिस्से में जा पहुंचे थे। काफी दूर पे उसे एक बाड़ा दिखाई देता है

"वोह उस तरफ हमारा क़स्बा है" जय इशारा करता है।

"ठीक है, जल्दी से इस तेंदुए को घोड़े पर बाँध देते हैं। अँधेरा होने वाला है, ज्यादा देर की तोह रात यहीं बितानी पड़ेगी।"

जय अभी भी रास्ता खोजने की कोशिश में चारों तरफ देख रहा था। उसने अपनी दूरबीन का रुख पहाड़ की तरफ किया और अचानक किसी चीज़ को देख कर उसकी आँखें ठिठक गयी।

"वोह क्या है"
"क्या"
"वोह उस तरफ"

शिवेन्दु जय के हाथों से दूरबीन छीन कर देखता है।
"मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। वहां तोह बस झाड ही झाड हैं।"

"नहीं वहां कुछ और भी है। हमें जाके देखना होगा"

"अरे छोड़ ना यार। होगा कोई जानवर, अँधेरा हो गया तोह घर नहीं जा पाएंगे।" शिवेन्दु ने समझाने की कोशिश की"

"नहीं। मैं जाकर देखूंगा। तुम्हे जाना है तोह जाओ।" जय मान ने वाला नहीं था।

जय उस "चीज़" की तरफ बढ़ता है। शिवेन्दु उसे छोड़ के नहीं जा सकता था। वोह भी उसके पीछे पीछे जाता है।

वोह दोनों कुछ आगे बढ़ते ही पहचान लेते हैं के वोह चीज़ आखिर है क्या।

"अरे !!! ये तोह..." दोनों एक साथ बोल पड़ते हैं।

दोनों भाग के उसके पास जाते हैं। ढलान होने के कारण शिवेन्दु का पाऊँ फिसल जाता है। जय उसे संभालता है। वोह "चीज़" दरअसल एक आदमी है जो बेहोशी की हालत में वहां पड़ा है। चोट के निशाँ उसके शरीर पर हर तरफ हैं.

"इसकी ये हालत कैसे हुई"।

करीब ४० साल का वोह आदमी, उसके कपडे चीथड़ों में बदल चुके हैं। साँसे अब भी चल रही हैं, मगर होश नहीं।

शिवेन्दु आगे बढ़ कर उसकी नाडी देखता है, उसकी आँखें टटोलता है, फिर निराश होके वहीँ बैठ जाता है। जय उसकी तरफ आशाभरी नज़रों से देखता है।

"क्या" जय उत्तेजित स्वर में पूछता है।

"अब कुछ नहीं हो सकता। ये नहीं बचेगा। शायद ये इन रास्तों से अनजान था। शाम के धुन्दल्के में पैर फिसल गया होगा और ये नीचे आ गिरा होगा...बेचारा।"

जय के चेहरे पर दुःख साफ़ दीखता था। "अब"। उसने पूछा।

"अब तोह हम भी बेचारे ही हैं। इस अँधेरे में रास्ता मिलना तोह मुश्किल ही है। आज रात यहीं डेरा डालते हैं। सुबह होते ही वापस जायेंगे।"

जय ने हाँ में सर हिलाया। "क्या इसके लिए कुछ नहीं कर सकते" जय ने एक बार फिर पूछा।

शिवेन्दु ने नाउम्मीद होते हुए कहा " ये ज्यादा देर तक जिंदा नहीं रहेगा...नो चांस"

"इसको साथ लेकर कहीं चलते हैं" जय ने उम्मीद नहीं छोड़ी थी।

"पागल हो गए हो!!! इसकी कमर टूट चुकी है। घोड़े पे लेकर जाना तोह दूर, इसे हिलाया भी तोह ये बेचारा दर्द से मर जायेगा" अब हम कुछ नहीं कर सकते। जब तक मदद आयेगी, ये बच नहीं पायेगा।"

ये कहते हुए शिवेन्दु घोड़ों की तरफ गया और unhe एक एक करके पास ही के पेड़ों से बाँध दिया और खुद ज़मीन पर जाके लेट गया।

जय उस आदमी के पास से उठा और पास ही पड़े एक बड़े से पत्थर पर जाकर बैठ गया। अपने साथ लाया एक टोर्च जला लिया क्यूंकि अँधेरा काफी हो गया था। उसने एक सिगरेट जला ली। उसने टोर्च से आस पास देखा। दूर दूर तक सिर्फ सन्नाटा था। वह अपने आप से ही बातें करने लगा।

'ज़िन्दगी भी क्या खेल खेलती है। एक गलत कदम और मौत। हम्म...३५-४० साल का एक आदमी, हत्ता कट्टा, शायद कभी बीमार भी न हुआ हो, इसे क्या पता था के आज आज घर से निकलूंगा तोह कभी वापस ना जा पाउँगा'

जय ये सोचते सोचते टोर्च की मदद से उस आदमी को पैरों से सर तक ताड़ रहा था। जैसे ही टोर्च की रौशनी उस आदमी की आँखों तक पहुंची..वोह आँखें खुल गयी।

जय ठिठक गया। वोह आँखें सीधा जय को देख रही थी। जय पहले तोह घबरा गया फिर हिम्मत करके उसके पास गया। जय कुछ बोलता उससे पहले ही वोह आदमी बोल पड़ा....

"य य यास्मीन क क क का पता लगाओ"

इतना कहते ही वोह आवाज़ बंद हो गयी, और वोह आँखें बेजान। वोह मर गया था.

जय अपनी जेब से एक रुमाल निकलता है और उसके चेहरे को धक् देता है। जय के चेहरे पर कोई भाव नहीं आता है। वोह उस आदमी की जेब टटोलता है शायद इस उम्मीद में के पता चल सके के ये आदमी था कौन। उसके जैकट की जेब से जय को एक तस्वीर मिलती है। वोह तस्वीर एक लड़की की है। गोरा चेहरा, काली आँखें, तीखे नैन नक्श, एक ऐसा चेहरा जोई कोई एक बार देख ले तोह कभी भूल न सके। वोह उस चेहरे में कहीं खो जाता है।

तभी कोई आके उसके कंधे पे हाथ रखता है। जय तुरंत पलट के देखता है।

"खाना खालें ??" शिवेन्दु पूछता है.

Thursday, September 16, 2010

वोह आँखें जिनमे थे हज़ार सपने.

वोह आँखें जिनमें थे हज़ार सपने। वोह नन्ही आँखें जो हरपल आसमान को घूरती रहती थी। कुछ ढूंडा करती थी। वोह आँखें थी शेखर की। हम सब की ज़िन्दगी में एक ऐसा पल आता है जो हमारी पूरी ज़िन्दगी को एक नयी मंजिल दे देता है। आज ऐसा ही एक पल शेखर की ज़िन्दगी में भी आया है।





आज गाँव में त्यौहार सा माहौल है। मेला सा लगा है। कल शाम को खबर आई थी के सरपंच जी आज गाँव को एक नया तोहफा देने जा रहे हैं। पर किसी को ये मालूम न था कि आखिर वह तोहफा है क्या। भीड़ बढती जा रही है। पंचायत के आगे कई पंडाल लगे हैं जिसमें लोग खचाखच जमा हैं। सबसे कि आगे कि लाइन में बच्चे बैठे हैं। सब सबसे अच्छी जगह घेरना चाहते हैं। इस वजह से कुछ लोगों में कहासुनी हो गयी और दो लोग तोह हाथापाई पर उतर आये। उनका झगडा इतना बढ़ गया के और लोगों को बीच बचाव करने आना पड़ा और पूरा गाँव दो खेमों में बात गया।





गाँव कस्बों के ऐसे झगड़ों में कुछ लोग डंडे लेकर हमेशा तैयार रहते हैं। ठीक ऐसा ही यहाँ भी हुआ। लोग भूल गए के वोह यहाँ आखिर आये किस लिए थे। उनके डंडों से किसी कर सर फूटता, इससे पहले ही सरपंच जी माइक पर आ गए और लोगों को शांत करने की कोशिश करने लगे। अपने लम्बे भाषण देने के लिए मशहूर सरपंच जी का पूरा वक़्त लोगों के झगडे सुलझाने में निकल गया। करीब आधे घंटे बाद मामला शांत हुआ और आखिरकार सरपंच जी बोलने के लिए माइक पर आ गए मगर शायद अब उनमें भी जान नहीं बची थी के खड़े होके कुछ बोले। बड़ी मुश्किल से ये कुछ शब्द उनके मुखमंडल से निकल सके।





"बिहारी जी, वोह जो लाये हैं, उसे चालु कर दीजिये।"





"जी बिलकुल, अभी लीजिये।" बिहारी जी बोले और एक बड़ा सा टेबल सरका के सामने लाये जिसपर कुछ कपडे से ढका रखा था।





बिहारी जी का चेहरा बता रहा था के वोह ये जानते हैं कि कपडे के नीचे क्या है और ये भी कि गाँव वाले कितना खुश होंगे ये देखके। बिहारी जी जोर से बोले।





"बच्चों, अब आप मेरे साथ बोलियेगा। एक..."





बच्चों ने भी बिहारी जी के सुर से सुर मिलाया


"एक"


"दो"


"तीन"





तीन कहते ही बिहारी जी ने एक झटके से वोह कपडा हटा दिया और गाँव वालों कि और बड़ी उत्सुकता से देखा। मगर गाँववालों ने कुछ ख़ास प्रतिक्रिया नहीं दी। शायद उनकी आँखों ने जो देखा वोह उन्हें पसंद नहीं आया या उन्हें समझ ही नहीं आया।





बिहारी जी को बोलना ही पड़ा।





"क्या आपमें से कोई बता सकता है कि ये क्या है।"





सबने ना में सर हिलाया।





"कोई बात नहीं, आप लोग कैसे बताओगे। हमें खुद कल इसका नाम पता चला है।" और बिहारी जी ने ये कहते हुए एक ज़ोरदार ठहाका लगाया। मगर गांववालों को ज़रा भी मज़ा नहीं बच्चों। क्या क्या कहते है इसे लगा था कि कपडे, अनाज, जैसा कुछ मिलेगा मगर सामनें तोह एक बदरंग सा बक्सा था।

"इसे कहते हैं टीवी"

Friday, May 21, 2010

Kites: Movie Review. Rating: 2/5

Lets get straight to the point.  Kites disappoints.

All the hooplah, all the expectations, all the buzz come crashing down, when this 2-hour 5-minute movie runs and for my amazement seems longer.

To start with, every movie needs a story to begin with, which is no where to be seen in Kites.  The "story" according to the makers is about Jay (Hrithik), a street-smart guy who can do anything and can go to any extent for the love of money, and for that reason he does fake marriages helping illegal immigrants get their green cards.  One such marriage was with Linda.  But this time it was different.  He couldnt forget Linda (Barbara).  He was in LOVE...but she was gone.

Then he acts to be in love with Gina (Kangna), so that he could reach her father (Kabir) and of course his wealth.  There he finds Linda again who is now getting married to Tony(Nicholas). So sad.  But obviously God  wants Jay and Linda to fall in love, so he creates rifts between Tony and Linda so that she could be all Jay's :).  Mmm.. What else are we missing for these to-be lovers to fall in love.  Oh yes...Rain..., So rain pours down on hot and deserted Las Vegas and our actors obviously break into a song and while they are at it, they also discuss how they both are cheating the rich family for their money.

Finding similar passions in themselves they finally fall in love and Anurag Basu copies and pastes the Shilpa Shetty-Shiney Ahuja scene from Life in a...Metro to show their intimacy, but alas Tony comes and tortures Linda.  But not for long as our Hero comes and saves Linda and they run.  They run for their love...Ahh.. too romantic.  And they run, they run again and they keep running till the end.  Papa millionaire Kabir Bedi and Main Villain, Nicholas Brown cant digest this act of our heroic lovers, so for revenge they run too to get them.

But do they get them.  Nopes they dont coz they both commit suicides, obviously in different time periods, and their souls unite in the end in the deep waters.

Now lets open the secret why Rakesh Roshan made this movie.  We all are waiting (and as we always do) for Krissh 2 and since it has Jadoo too, so this makes for an amazing setting for a space-set action-packed adventure movie, but such movies cost a lot and Papa Roshan is too smart to invest in such a movie until and unless he has means to earn it back. 

So one day, as Rakesh says, he was sitting and watching at the sky and saw 2 kites and thought of an idea, the idea was what if one kites cuts another while they are too close and develops this idea into this story (I dont understand where this idea was in this story).  But what he didnt tell us was that he also wanted a big market for his next movie Krissh 2, so he just wanted to create a buzz in hollywood, so he jumps from his seat and decides to make a movie which will have all the hollywoodish elements jumbled up together, so that he will get to work with some hollywood Ace technicians, but in doing that he forgot that strength of FilmKRAFT always lied in its story and its appeal to the masses.

At the end of the day, Kites is just a publicity stunt and not a movie. 

As for acting, Hrithik did all what was required (that wasnt more than looking good) and Barbara smiles, Kangna wasted, and Kabir and Nicholas okay.  Extras resembled characters from funny cowboy games. 

Music wasnt required, but still Zindagi Do Pal Ki, suited to the scene, else was a waste.

Cinematography is amazing.  Ayananka Bose is hugely talented.

Action of the movie is great, fast-paced and truly international.  Action sequences are the only parts of the movie that keep you at edge of the seat and glued to the screen.

Anurag Basu, what to say, did whatever he could to make movie interesting but was felt short coz of the bad screenplay.

Rakesh Roshan has made a lot of moolah a year before of releasing by selling the movie rights to Reliance Big Pictures, so he is happy.

As for exhibitors, the buzz of Kites is still there so they are gonna make money too at least in the first week.  But as the first week will go by, with mouth publicity, the collections are bound to trend down.

Kites is a movie without a heart.  I hope FilmKRAFT will come back with a movie that will touch hearts as they did earlier.

Monday, April 5, 2010

Adventures of Mine: My Dream: Night of April 5-6, 2010

I am sitting on a grass hill all alone, feeling the breeze.  At that very moment, I see Archana Puran Singh passing by me and going to a casket placed in front of me and paying her homage to the dead guy.  Suddenly, all big hot shots of the industry start to do the same.  I see almost everyone including the Khans, Roshan, Kumars, and various actresses.  I ask an old man sitting beside me that whether he needs any help to go there.  He says he has already done that and now he would like to go home.

 

I help him to get to the parking stand where I see Tulip Joshi.  I go up to her and kiss her on the cheek.  She asks who I am.  I said doesn’t she remember me, I am Kshitij.  She says oh Kshitij, you are friend of my sister Tulip.  I am her twin sister.  I was shocked by the resemblance.  Tulip also arrives and I kiss her.  They tell me that they are late or their coaching classes, they were holding some copies in their hands.  I told them that I always kind of suspected that they had a twin sibling.  They smiled and went away.

 

I start my Scooty Streak and I am returning home too, where I see Lokesh in a railway naka.  I wave at him and I ask kahan tha be.  He said tu kahan tha.  I said yahin peeche ek party thi, main jaldi aa gaya.  He tells me that he would like to go there.  We go there and everything looks different.  Instead of grassy hill, it’s a flat ground with camps and we enter one camp, there is one naked woman inviting us, we run from there.

 

CUT TO:

 

Its some party setting, where everyone is dressed in black and there is no music.  Suddenly, Suniel arrives and music starts, first disco and then birthday music and every one, Nauheed, Sophie, Tulip (faces I remember from dream) starts singing “Happy birthday to you” and all looking at me.  I am really touched that they have thrown party for me.  I had no idea about it.  Though I am little happy that its all happening, I am little sad too, coz she is not there with whom I would like to spend the evening.  Nauheed says Kshitij look there, I hope you are talking about her.  I look there and there she is, standing in a black t-shirt and a blue jeans, Priyanka Roy, looking so gorgeous that it cant be described in words.

 

I almost cried looking at her coz I know how hard it must have been for her to come here.  We hugged and kissed and danced together all evening.

 

CUT TO:

 

I am in Jaipur with a weird family, where everyone is just too nice.  Its one of the biggest joint families I have seen.  An old man is very sick and all the relatives from india and from abroad have gathered.  They all seem to like me and doing all the things for me as soon as I say them.  I am feeling very important.  Kids love me too.  A family from US loves me almost as their son and their children a boy and his little sister, always playing around me.  I am feeling okay here.

 

CUT TO:

 

So its my first day of job here, I have got a desk job that I have no idea what I need to do here.  But reason is enough for me to work here coz this is the place where Priyanka works and she will be in front of my eyes always.  She is wearing the same black t-shirt and blue jeans, looking gorgeous as always.  I am at my desk when I try to explain something to my mom and kity, when Priyanka gives me an eye.  And I see her hand.  She gives me signal to follow her.  I follow her.  We go to back of the office, where we again hug and kiss.  While we were doing it, I see a man standing a littler further with a pressure cooker in his hand.  I don’t give it much importance.  Now I return to my desk when I see a camera pointed at the place where me and Priyanka were kissing.  I shout “who has placed this camera there, remove it.”  Boss of the company comes and says yes, the place of the camera shouldn’t be there.  Place it here.  He points to the place where we were doing it.  I fill with frustration.

 

He asks me whether I know what my job is.  I say no.  He tells me that I am a broker and my job is to take orders from all the pressure cooker manufacturing agents.  I say oh I see.  Now I understand why that man was standing with pressure cooker in his hand.  I ask him whether I can spend a day with another broker and learn how its done.  He asks how much I am going to make him suffer for 1000 bucks.  I realize that my salary is 1000 bucks.  I call priyanka and tell her that I was getting much more when I was working for focus and there is still chance to earn even more If I move to US.

 

CUT TO:

 

I get to know when and from where “ferry” for US goes.  I slip in.  I see outside while sitting on ferry.  I see that we are moving on a map.  I see Maldives, Caribbean passing by and with just one bag in my hand, I reach California and I stay at the family I met in Jaipur.  They were really nice to me again and their children play with me.  I leave their home and I go to an STD and I call Charu, that I have reached safe and I will be returning home very soon.  I ask the man whether this is actually Silicon Valley, they live in.  He tells me No.  Silicon valley is little further.  This is Santa Fe.  I say okay.

 

Suddenly I remember that I don’t have enough money to return home.  I look at my wallet.  I have 422 Rupees.  I need at least 700 to reach india.  I am troubled.  I cant even tell them this.  The woman of the house shows me her art work that she had made from clay and glass.  It was really wonderful to see.  I could have enjoyed it better if I didn’t have money trouble in my mind.  It was evening and it was time to say good bye.  They told me where I could bus to the harbor.  I leave their home.  I was worried coz I had enough money to reach harbor but certainly not enough to reach India.  I tell this to Tendulkar.  He said he too doesn’t have money at this time, else he would have helped me, also he is still has some time to leave US.  He says sorry.  I told him its okay, its not his fault.

 

As soon as I say this, I get a msg from my Kotak bank that my salary has been credited to my account.  I look at the amount.  Hurray, its enough for me to reach India.  Now I go to the bus stop, where I see a group of indian students.  They are having some fight with the bus conductor, about the exchange rates.  I go there and I try to solve that.  There are a few dollars missing.  I suggest them why don’t they buy oranges for that amount of money.  Their fight is resolved.  They all thank me.

 

We get into the bus.  They tell me that its better that I take aeroplane, since it costs the same and reaches faster.  Okay I tell the conductor to take me to the airport.  In the besides me and those indian students, there were sitting some US boys, who started to bully those indian students.  They made fun of them, and spit on them.  It was intolerable.  I ask indian students whether they are going to India.  They tell me, No, they have plans to jump off plane above the Caribbean, they want to enjoy sun and sand for some time.  I tell them that it’s a wonderful thought.  The bully people get off the bus at next stop and we reach the airport.  I get into the plane and I am on my way to India.  I see them jumping from the plane and I wonder whether the islands have arrived.  I look down and I see vast dark blue ocean with rings of white sand and the sun never shone brighter than this.  It was amazing.

 

I reach India.  It’s a beach and I pass by a small hotel where I see Sachin, eating dog meat.  I make a face.  He tells me that his work was finished sooner than he thought, so he took the ferry.  I don’t give him any answer and I leave that place.

 

Papa woke me up.

Sunday, April 4, 2010

Journalism in the age of Butter

It is really inspirational to see some of my friends who are doing a course on journalism. They opted for studying journalism coz they really wanted to bring change to this society. They have passion and enthusiasm and a dream to make changes happen through their writing and they really feel very strongly about it.

Its just i dont how long their flame is gonna last.

Today, journalism has become both wider in its reach and narrower in the content. More and more channels are coming up but that hasnt demoralized print media. There are more number of newspapers now and it could have been a good sign but unfortunately, Media which could have been used to expose and control those "bad people" of society is being used by those very persons against each other.

Almost all news channels that we see on TV are funded by large companies, which make sure that their company's name isnt in the limelights for bad reasons, and TV channels are forced to make news about or investigate for tiny-tiny shortcomings that the opponents might have.

Its not at all easy to survive fighting govt. And media understands that so they telecast only news that is "pre-approved" by the govt. agencies. News is created these days. Things which were just daily happenings in society before the new age media arrived, are now Breaking News, whether its children falling in pits or a husband beaten by his wife. People record these things on their mobiles and they are given TV sets by a news channel. Horrible.

In my city only, Bhopal, there are 2 major Hindi newspapers. In one, BJP govt. is doing a great job and other, the govt. has done nothing and daily new scandels creep up. Once in a while, there is change in matter that shows that govt officials havent "cooperated", but thats just too rare.

Today, people just dont need bread on their table, they need butter too. Every penny u earn is less than what u could have earned. Media is all about being powerful and making money today and that too in the quickest time possible, so how can we expect morality and responsibility out of it. Morality is like a water bubble, so vulnerable that it breaks with a slight touch of money.

Saturday, March 27, 2010

About a Daily Soap called Kashi

Yes i too represent the "modern" youth of india and i too find it cool to say that daily soaps suck, those are just for people who have nothing better to do.  But most of us modern people jump at the idea of landing a role in one of them.  The reason being instant stardom.  The impact of today's television is immense and it has become the most powerful medium of entertainment in 21st century.

But I am not writing this blog to go ga-ga over television.  I write this to share an amazing experience i was fortunate to experience called Kashi.  I was just surfing through the channels when i saw a setup which looked like one of the short stories that i had written.  A girl and her mother are traveling across a barren land.  Their throats parched with thirst.  After miles of walking into endless lands, they found a well filled with water.  How their souls would have filled with joy, only Santiago could have told after he found his treasure.

Mother started drinking the water and when her belly wasnt even fully satisfied, somebody shouts and tells them that the water from this well is poisonous, cant you read the sign.  They couldnt coz both mother and daughter couldnt read or write.

Back home, mother becomes severely ill and her husband is told by doctor that she wont last long.  She makes her husband pledge that their daughter wont be illiterate like her and that he will send their daughter to school.  Daughter also promises mom that she will study hard.  Mother dies.

Girl being from lower caste is admitted in school, only after school administration received a letter from education minister.  Girl super excited that she will get to study, goes to school only to find that school is empty.  All students are now hesitant to come to school because they cant study under the same roof with a girl from lower caste.  Girl is given 2 choices, whether to study alone or let others study.  Obviously, she chose the latter option.  But she is scared to tell this to her father, who is supportive of her studying.

The girl who plays Kashi has carved her character so well that you fall in love with her and feel for her the moment you see her on screen.  Story isnt slow paced at all and it conveys such a strong message that it made me write this blog just to forward the message further on.

Yes, I saw a daily soap.  But for the first time i am feeling good to admit it.